आपत्ति व्यवस्थापन में ‘नाविक’ उपग्रह की सहायता
भारत ने गुरुवार (दि…..) को सातवाँ और अंतिम सुदूर संचार उपग्रह (नॅव्हीगेशन सॅटेलाईट) आय.आर.एन.एस.एस.१जी. (IRNSS1-G) अर्थात ‘नाविक’ का प्रक्षेपण करके देश की अपनी सुदूर संचार उपग्रह यंत्रणा (सॅटेलाईट नॅव्हीगेशन यंत्रणा) प्रस्थापित की।
हिमालय की अनेक पर्वत श्रेणियों में जहाँ मोबाईल की संपर्क यंत्रणा बंद पड़ जाती है या दुर्लभ होती है, उन भागों में फँसे हुए पर्वतारोहकों को उचित स्थान की जानकारी यह यंत्रणा देगी इस प्रकार का उसका स्वरूप (डिज़ाईन) बनाया गया है, ऐसा तज्ञों का मत है।
उत्तराखंड स्पेस ऍप्लीकेशन सेंटर के (USAC) तज्ञ ऐसा भी कहते हैं कि यह यंत्रणा नैसर्गिक आपत्ति का पता लगाकर उसकी योग्य जानकारी भी हमें दे सकती है।
USAC के डायरेक्टर श्री.दुर्गेश पंत कहते हैं कि ‘शुरुआत में कुछ समय पहले हम यू.एस. तंत्रज्ञान पर आधारित उपग्रह यंत्रणा का उपयोग करते थे। उस समय हमें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था। किंतु अब हमारी स्वयं की यह उपग्रह यंत्रणा, सुदूर संचार के लिए (नेव्हीगेशन के लिए) उपयोग में लायी गई तो निकट भविष्य में हमें अनेक (असंख्य) अन्य बातोम में भी यह मदतगार सिद्ध होगी। उदाहरणार्थ – उत्तराखंड की भौगोलिक रचना को ध्यान में रखते हुए जो यात्री, यात्रा करनेवाले या उत्साही वीर संकट में फँस जाते हैं, उन्हें इस उपग्रह के प्रक्षेपण की सहायता से निश्चित ही सहायता मिलेगी!